8 घंटे पहलेलेखक: रक्षा सिंह
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कारगिल में 17 हजार फीट की ऊंचाई… दुश्मन डेरा जमाए बैठे थे। इंडियन आर्मी नीचे खड़ी थी। हमारी फौज को वहां तक पहुंचने के लिए कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। दोनों ओर गहरी खाई और एकदम सीधी चढ़ान। माइनस में तापमान और हाड़ कंपा देने वाली ठंड। अब तक सब दुश्मन के फेवर में हो रहा था। लेकिन फिर भी भारतीय जवान ठंड और भूख-प्यास की परवाह किए बिना आगे बढ़ते रहे। करीब दो महीने तक चली इस जंग में भारतीय सैनिकों ने अपने अदम्य साहस के बलबूते जीत हासिल की।
आज कारगिल युद्ध विजय को 24 साल हो गए। 26 जुलाई, 1999 को कारगिल पर हिन्दुस्तान फौज ने तिरंगा लहराया। इस जंग में भारत के 527 जवान शहीद हुए। लेकिन एक जवान ऐसा भी था, जिन्होंने 15 गोलियां खाई लेकिन मौत को हरा दिया। वह कोई और नहीं, बल्कि परमवीर चक्र विजेता कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव हैं। चलिए उनकी जांबाजी के किस्से को शुरू से देखते हैं…
19 साल की उम्र में मिला टाइगर हिल पर तिरंगा फहराने का टारगेट
साल 1996. बुलंदशहर के योगेंद्र सिंह यादव 16 साल के थे। पिता करण सिंह यादव सेना में थे। उन्होंने 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में हिस्सा लिया था। बचपन से ही योगेंद्र अपने पिता की तरह आर्मी में जाना चाहते थे। वो बताते हैं कि गांव में जब सेना में भर्ती की चिट्ठी आई, तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। ड्यूटी जॉइन करे करीब ढाई साल हुए थे, तब घरवालों ने मेरी शादी तय कर दी।
साल 1999. योगेंद्र छुट्टी लेकर घर वापस आए। शादी हुई। उनकी शादी को महज 15 दिन बीते थे, तभी सेना मुख्यालय से एक आदेश आया। आदेश था, ‘छुट्टी खत्म, ड्यूटी जॉइन करिए।’ रिश्तेदारों ने योगेंद्र से अभी जॉइन करने के लिए मना किया, लेकिन वो नहीं माने।
उन्होंने अपना सामान पैक किया और जम्मू-कश्मीर पहुंच गए। वहां पहुंचकर उन्हें पता चला कि उनकी बटालियन 18 ग्रिनेडियर द्रास सेक्टर की सबसे ऊंची पहाड़ी तोलोलिंग पर लड़ाई लड़ रही है। इस युद्ध में ही योगेंद्र को टाइगर हिल के तीन सबसे खास बंकरों पर कब्जा करने का काम सौंपा गया।
पाकिस्तानी आर्मी ने धोखे से कारगिल पर कब्जा कर लिया
कारगिल का बटालिक सेक्टर चारों तरफ से ऊंची पहाड़ियों से घिरा हुआ है।
साल 1999 तक जोजिला से लेह तक इंडियन आर्मी की सिर्फ एक ब्रिगेड तैनात होती थी। 14 हजार से 18 हजार फीट की ऊंचाई वाली बर्फीली चोटियों पर डटे रहना कठिन था। इसलिए भारत और पाकिस्तान दोनों तरफ की सेनाएं अक्टूबर से मई तक ये चोटियां खाली कर देती थीं।
पर इस साल ऐसा नहीं हुआ। जनवरी से अप्रैल के बीच मुश्कोह, द्रास, कारगिल, बटालिक और तुतुर्क सेक्टर के बीच घुसपैठ हुई। पाकिस्तानी आर्मी LOC के करीब 10 किलोमीटर तक अंदर आ गई और सर्दियों में खाली पड़ी 130 भारतीय पोस्ट पर कब्जा कर लिया। पाकिस्तान का प्लान था कि श्रीनगर को लेह से जोड़ने वाले नेशनल हाईवे को काट दें। ताकि सियाचिन और लद्दाख की सप्लाई बंद हो जाए।
एक चरवाहे ने पकिस्तान के कब्जे की जानकारी दी
3 मई 1999. ताशी नामग्याल नाम का चरवाहा अपने दोस्तों के साथ निकल रहा था। तभी उसने पठानी कपड़े पहने कुछ लोगों को बटालिक सेक्टर में बंकर बनाते देखा। उसने भारतीय सेना को इस घुसपैठ की जानकारी दी। 15 मई को लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया और 5 सैनिक काकसर सेक्टर की बजरंग पोस्ट पर पेट्रोलिंग करने पहुंचे। लेकिन दूसरी तरफ घुसपैठिए तैयार बैठे थे। उन्होंने सौरभ कालिया और बाकी सैनिकों पर हमला बोल दिया। मुठभेड़ हुई। उसके बाद उन्होंने हमारे सैनिकों को बंदी बना लिया।
- यहीं से भारतीय सेना को कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ और उनकी बड़ी तैयारी का अंदाजा लग गया।
हमें ऑर्डर मिला कि दौड़कर दुश्मनों के बंकरों में घुस जाओ
इसके बाद टाइगर हिल जीतने के लिए 18 ग्रेनेडियर यूनिट को जिम्मेदारी दी गई। इसमें योगेंद्र सिंह यादव भी शामिल थे। वो बताते हैं कि 2 जुलाई की रात, हम 21 जवानों ने ऊपर चढ़ना शुरू किया। हम पूरी रात चले। जैसे ही सुबह हुई पत्थरों की आड़ लेकर छुप गए। दिनभर हम छुपे रहे। जरा-सी भी मूवमेंट करने का मतलब था जान गंवाना, क्योंकि दुश्मन ऊंचाई पर थे। वो हमें आसानी से देख सकते थे। देर शाम जैसे ही अंधेरा हुआ हम फिर से ऊपर चढ़ने लगे।
एक के बाद एक ऊंची चोटियों की चढ़ाई हम करते जा रहे थे। कई बार तो ऐसा लगता था कि यही टाइगर हिल है, लेकिन फिर थोड़ी ही दूर पर उससे भी बड़ी चोटी दिखाई पड़ती थी। धीरे-धीरे हमारा खाना भी खत्म हो रहा था। प्यास भी लग रही थी, पर हमें इसकी परवाह नहीं थी। मन में बस इतना ही था कि जैसे भी हो जल्दी से जल्दी ऊपर चढ़ना है। भूखे-प्यासे रस्सियों के सहारे एक-दूसरे का हाथ पकड़कर आगे बढ़ते रहे।
अगले दिन पाकिस्तान की आर्मी को इसकी भनक लगी कि इंडियन आर्मी ऊपर चढ़ गई है। उन्होंने दोनों तरफ से फायर खोल दिए। जैसे-तैसे पत्थरों की आड़ में छुपकर हम 7 बंदे ऊपर चढ़ गए, लेकिन बाकी के सैनिक नीचे ही रह गए। दुश्मनों की तरफ से इतनी जबरदस्त फायरिंग हो रही थी कि उन्हें हिलने का मौका ही नहीं मिला।
चढ़ाई के बाद जब हम ऊपर पहुंचे, तो सामने दुश्मन के दो बंकर थे। हमने एक के बाद एक उनके दोनों बंकर ध्वस्त कर दिए।
सामने एकदम खड़ी चट्टान। मुझे लगा कि इस पर चढ़ना मुमकिन नहीं है। फिर हमें एक आइडिया सूझा। एक साथी काफी लंबा था। मैं उसके कंधे पर चढ़ गया और ऊपर एक पत्थर में रस्सी बांध दी। फिर उस रस्सी के सहारे दोनों ऊपर चढ़े। इस तरह हम एक-दूसरे के कंधे पर चढ़कर रस्सी के सहारे आगे बढ़ने लगे। कुछ घंटों की चढ़ाई के बाद जब हम ऊपर पहुंचे तो सामने दुश्मन के दो बंकर थे। उन्होंने तुरंत फायरिंग शुरू कर दी। पलक झपकते ही हमने भी एक साथ फायर खोल दिया। एक के बाद एक उनके दोनों बंकर ध्वस्त कर दिए। चार दुश्मन भी ढेर हो गए।
अब यहां से टाइगर हिल सिर्फ 50-60 मीटर की दूरी पर था। पाकिस्तान की फौज ने देख लिया कि इंडियन आर्मी यहां आ गई है। उन्होंने फायरिंग और गोलाबारी शुरू कर दी। अब हमारे सामने ऐसी स्थिति थी कि ना पीछे हट सकते थे, ना बहुत देर छिपे रह सकते थे। हम यह मान चुके थे कि अब मरना ही है।
तब हमारे कमांडर थे हवलदार मदन। उन्होंने बोला कि दौड़कर इन बंकरों में घुस जाओ। हमने कहा सर, दुश्मनों ने माइन लगा रखी होगी। उन्होंने कहा तो क्या हुआ, बहुत होगा तो जान ही जाएगी न…। हमारी फौज के अंदर डिसिप्लिन है, जो ऑर्डर मिल गया उसे मानना ही था।
ऐलान हुआ कि टाइगर हिल पर भारत का कब्जा हो गया लेकिन खबर गलत थी
4 जुलाई. उस वक्त के रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस ने बिना जाने टाइगर हिल पर कब्जे की घोषणा कर दी। जबकि अब तक हमने उस पर कब्जा नहीं किया था। टाइगर हिल अब भी पाकिस्तानियों के कब्जे में ही थी। हम सब तो अभी तक चोटी से 50 मीटर नीचे ही थे। उस वक्त ब्रिगेड मुख्यालय तक संदेश पहुंचा, ‘दे आर शॉर्ट ऑफ द टॉप।’
श्रीनगर और ऊधमपुर होते हुए जब ये संदेश दिल्ली पहुंचा, तो उसकी भाषा बदल चुकी थी। वहां बताया गया, ‘दे आर ऑन द टॉप।’ रक्षा मंत्री तक ये संदेश तब पहुंचा, जब वो पाकिस्तान में एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने ना आव देखा ना ताव, ना ही इस बात की दोबारा पुष्टि की। उन्होंने ऐलान कर दिया कि टाइगर हिल पर अब भारत का कब्जा हो गया है।
…लेकिन ऐसा था नहीं। हमारी जंग अभी भी जारी थी।
टाइगर हिल पर कब्जा करने की पहली कोशिश नाकामयाब हुई
एक तरफ ये घोषणा हुई। दूसरी तरफ 4 जुलाई की सुबह हम पाकिस्तानियों के मोर्चे में घुस गए। टाइगर हिल की चोटी पर जगह इतनी कम थी कि वहां कुछ ही जवान रह सकते थे। हमारे बाकी साथी जो सपोर्ट कर रहे थे, वे करीब 25-30 फीट नीचे थे। पाकिस्तानियों ने अचानक ढलानों पर ऊपर आकर हम पर हमला करना शुरू कर दिया।
उस वक्त बादलों ने चोटी को इस तरह से जकड़ लिया था कि हमारे सैनिकों को पाकिस्तानी सैनिक दिखाई नहीं दे रहे थे। इस हमले में चोटी पर पहुंच चुके हमारे सात जवान शहीद हो गए। हमारी टाइगर हिल पर कब्जा करने की पहली कोशिश नाकामयाब हो गई। हमें इसका बहुत नुकसान उठाना पड़ा। तब हमने तय किया कि जब तक आस-पास की चोटियों पर कब्जा नहीं हो जाता हम टाइगर हिल पर हमला नहीं करेंगे।
हमने खड़ी चट्टान के सहारे टाइगर हिल तक पहुंचने का फैसला किया
भारतीय सैनिक टाइगर हिल पर तोपों के गोले ले जाते हुए।
योगेंद्र यादव ने बताया कि पाकिस्तानी हमले के बाद उसी रास्ते से दोबारा जाना मौत के मुंह में जाने के बराबर था। इसलिए हमने प्लान बी तैयार किया। हमारे कमांडिंग ऑफिसर ने फैसला लिया कि हम खड़ी चट्टान के सहारे टाइगर हिल तक पहुंचेंगे। दुश्मन कभी इस बात का अंदाजा नहीं लगा सकता कि हम वहां से चढ़ सकते हैं। हमने ऊपर पहुंचते ही दुश्मन के पहले बंकर को ध्वस्त कर डाला। उनके दूसरे बंकर तक पहुंचने सिर्फ 7 जवान बचे थे। पाकिस्तानियों को हमारी भनक लगते ही उन्होंने फायर खोल दिया। हालांकि उन्हें हमारी लोकेशन का पता नहीं था। इसलिए हमने भी कोई हरकत नहीं की और चुपचाप अपनी जगह बैठे रहे। हम जरा भी हिलते तो मारे जाते। कुछ देर बाद गोलीबारी शांत हो गई। उन्हें लगा कि हैवी फायर में हम लोग मारे गए।
एक तरफ हमें देखने के लिए 10-12 पाकिस्तानी सैनिक हमारी तरह बढ़े। दूसरी तरफ हम सभी हथियारों के साथ तैनात थे। हम सबने अपनी पोजिशन ले ली। पाकिस्तानी सैनिकों के करीब आते ही हमने उनपर धावा बोल दिया। सभी सैनिक ढ़ेर हो गए। लेकिन 2 सैनिक भागने में कामयाब रहे। उन्होंने दूसरे बंकरों में मौजूद बाकी पाकिस्तानी सैनिकों को हमारी लोकेशन बता दी। अब उन्हें हमारी लोकेशन और संख्या का एकदम ठीक अंदाजा था।
एक मोर्टार का टुकड़ा मेरी नाक को फाड़कर निकल गया
योगेंद्र यादव ने बताया कि पाकिस्तानी सैनिकों ने धड़ाधड़ हम पर हमला करना शुरू कर दिया। गोलियों और ग्रेनेड की बारिश होने लगी। अंधाधुंध चल रही इन गोलियों के बीच एक मोर्टार का टुकड़ा मेरी नाक को फाड़कर निकल गया। खून ऐसे बहने लगा जैसे किसीने नल खोल दिया हो। थोड़ी देर तक तो मुझे कुछ समझ नहीं आया। तभी एक साथी मेरे पास आया। उसने बताया कि हमारे बाकी सब साथी मारे जा चुके हैं।
मैंने होने साथी को मुझे फर्स्ट ऐड देने को कहा। जैसे ही उसने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाया एक गोली उसके माथे के आर-पास हो गई। वो वहीं गिर पड़ा। मैं उसे संभालता तब तक एक गोली मेरे कंधे को चीरते हुए निकल गई।
गोली लगने के बाद योगेंद्र यादव वहीं गिर पड़े। पाकिस्तानी सैनिक उनके करीब आने लगे। उन्हें लगा अब सब कुछ खत्म हो चुका है। जैसे ही सैनिक उनके करीब पहुंचे उन्होंने मरने का नाटक किया। लेकिन दुश्मनों ने हमारे मृत सैनिकों पर भो गोलियां चलाना शुरू कर दिया। मैंने अपनी आंखों से देखा कि वो मेरे शहीद साथियों के शरीर पर गोलियां चला रहे थे। गोलियां लगने से हमारे जवानों के शरीर उछल रहे थे।
इसी बीच एक पाकिस्तानी सैनिक मेरी तरफ बढ़ा। उसने मुझ पर गोलियां चलाना शुरू कर दिया। उसने पहले मेरे पैरों पर गोलियां चलाईं और फिर कंधे पर गोली मारी। लेकिन मैं एकदम नहीं हिला, बेसुध वहीं पड़ा रहा। तभी दुश्मन ने मेरे सीने की तरफ बन्दूक तान दी। मुझे लगा अब कोई नहीं बचा सकता। उसने मेरे सीने पर गोली दागी लेकिन मैं जिंदा था।
दरअसल जब मैं ऊपर चढ़ रहा था तो मेरी पिछली जेब फट गई थी। इसके बाद मैंने अपना बटुआ आगे की जेब में डाल दिया। बटुए में कुछ सिक्के भी पड़े थे। ये गोली उन्हीं पर आकर लगी। गोली के धक्के के मैं कुछ देर बेहोश तो रहा, मेरी सांसे अटक गईं। लेकिन मेरी जान बच गई।
कैप्टन योगेंद्र का एक हाथ शरीर से लटक रहा था
उन्होंने बताया कि जैसे ही मुझे होश आया कुछ पाकिस्तानी सैनिक अब भी वहीं खड़े थे। वो अपने सैनिकों को मैसेज पहुंचा रहे थे कि उन्होंने पहाड़ी पर फिर से कब्जा कर लिया। ये वो पहाड़ी थी जिस पर पाकिस्तानी सैनिक वापस लौटते तो हमारे बचे हुए सैनिक भी मारे जाते। साथ ही इस पर दोबारा कब्जा करना भी नामुमकिन हो जाता। मैं यही सोच रहा था तभी मुझे अपने करीब एक ग्रेनेड पड़ा दिखा। मैंने तुरंत उसे उठाया और उनकी तरफ फेंक दिया।
इससे तीन दुश्मनों के चीथड़े उड़ गए। इसके बाद मैंने वहां से उठने की कोशिश की लेकिन मेरा एक हाथ शरीर से लटक रहा था। मुझे लगा टूट कर गिर जाएगा। मैंने झटका दिया, लेकिन टूटा नहीं। तब मैंने एक कपड़े से उस हाथ को बांध लिया। पाकिस्तानी सैनिकों के पहुंचने से पहले मैंने सभी रायफलों को पोजिशन पर लगाना शुरू कर दिया। जैसे ही दुश्मन आगे बढ़े मैंने बारी-बारी से हर बंदूक से फायरिंग शुरू कर दी।
…आखिरकार हमने टाइगर हिल पर कब्जा कर लिया
इंडियन आर्मी ने कारगिल युद्ध में बोफोर्स तोपों से गोलीबारी की।
योगेंद्र बताते हैं कि हर पोजिशन से फायरिंग होता देख दुश्मन को लगा कि भारतीय सेना की दूसरी टुकड़ी ऊपर पहुंच चुकी है। यह देखकर कुछ ही देर में वो लोग पीछे हट गए। जिससे हमारी दूसरी टुकड़ी को वक्त मिल गया। पाकिस्तानी सैनिकों के वापस लौटने के बाद मैं बेसुध होने लगा। मुझे चल कर जाना मुमकिन नहीं लग रहा था। नीचे तरफ मुझे एक नाला दिखा। मैं नाले में बहकर नीचे चला गया।
नीचे पहुंचने के बाद मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैं पाकिस्तान की तरफ आ चुका हूं, लेकिन तभी मुझे अपनी सेना के जवान दिखे। मैंने उन्हें आवाज लगाई। वो मुझ तक पहुंचे और मैंने उन्हें दुश्मन की पोजिशन और उनकी तादाद बताई। मुझे बेस हॉस्पिटल भेजकर हमारी सेना ने ऑपरेशन शुरू कर दिया। मैं बेहोश हो चुका था। जब होश में आया तब भारत के जवान शान के साथ टाइगर हिल पर हमारा झंडा फहरा रहे थे।
19 साल की उम्र में मिला परमवीर चक्र
15 अगस्त को 2000 को योगेंद्र यादव को सेना का सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र मिला। वे सबसे कम उम्र में यह सम्मान पाने वाले सैनिक हैं। योगेंद्र बताते हैं, ‘14 अगस्त की बात है। मैं टीवी देख रहा था। उसी से मुझे पता चला कि मरणोपरांत 18 ग्रेनेडियर यूनिट के जवान योगेंद्र सिंह को परमवीर चक्र मिला है।
कैप्टन योगेंद्र यादव को सबसे कम उम्र में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। तस्वीर तब की है जब वो आर्मी से रिटायर हुए।
मेरे लिए यह गर्व की बात थी कि अपनी यूनिट के एक जवान को यह सम्मान मिलने वाला है। कुछ देर बाद मुझे बताया गया कि सुबह सेना प्रमुख मुझसे मिलने वाले हैं। मुझे पता नहीं था कि वो क्यों मिलने आ रहे हैं? सुबह सेना प्रमुख आए। उन्होंने मुझे बधाई दी। तब मुझे पता चला कि परमवीर चक्र मुझे ही मिला है। दरअसल, मेरी यूनिट में मेरे ही नाम का एक और जवान था। इसलिए ये कंफ्यूजन हुआ था।
फिलहाल कैप्टन योगेंद्र यादव आर्मी से रिटायर हो चुके हैं। वे पूरे देश के लिए एक लिविंग लेजेंड हैं।
ये तो थी परमवीर चक्र विजेता कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव की कहानी। ऐसी ही और कहानियां आप नीचे दिए लिंक पर पढ़ सकते हैं…
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